🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 24 | Bhagavad Gita Chapter 2, Shlok 24

भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 24

Bhagavad Gita Adhyay 2 Shlok 24 में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के शाश्वत और अविनाशी गुणों के बारे में बताया है। आत्मा न तो जल सकती है, न सुखाई जा सकती है, और न ही इसे कोई भौतिक शक्ति नष्ट कर सकती है। यह सर्वव्यापी, स्थिर, और नित्य है।
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श्लोक:
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥२४॥

Transliteration:
achchhedyo ’yam adāhyo ’yam akledyo ’śhoṣhya eva cha
nityaḥ sarva-gataḥ sthāṇur achalo ’yaṁ sanātanaḥ

अर्थ:

यह आत्मा अखंडित तथा अघुलनशील है। इसे न तो जलाया जा सकता है, न ही सुखाया जा सकता है। यह शाश्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर तथा सदैव एक सा रहने वाला है।

Meaning:
This soul is indestructible and cannot be burned, wetted, or dried. It is eternal, all-pervading, immovable, and unchanging.

तात्पर्य:

अणु-आत्मा के इतने सारे गुण यही सिद्ध करते हैं कि आत्मा पूर्ण आत्मा का अणु-अंश है और बिना किसी परिवर्तन के निरन्तर उसी तरह बना रहता है। इस प्रसंग में अद्वैतवाद को व्यवहृत करना कठिन है क्योंकि अणु-आत्मा कभी भी परम आत्मा के साथ मिलकर एक नहीं हो सकता। भौतिक कल्मष से मुक्त होकर अणु-आत्मा भगवान् के तेज की किरणों की आध्यात्मिक स्फुलिंग बनकर रहना चाह सकता है, किन्तु बुद्धिमान जीव तो भगवान् की संगति करने के लिए वैकुण्ठलोक में प्रवेश करता है।
सर्वगत शब्द महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कोई संशय नहीं है कि जीव भगवान् की समग्र सृष्टि में फैले हुए हैं। वे जल, थल, वायु, पृथ्वी के भीतर तथा अग्नि के भीतर भी रहते हैं। जो यह मानते हैं कि वे अग्नि में स्वाहा हो जाते हैं, वह ठीक नहीं है क्योंकि यहाँ कहा गया है कि आत्मा को अग्नि द्वारा जलाया नहीं जा सकता। अतः इसमें सन्देह नहीं कि सूर्यलोक में भी उपयुक्त प्राणी निवास करते हैं। यदि सूर्यलोक निर्जन हो तो सर्वगत शब्द निरर्थक हो जाता है।

The soul is indestructible, eternal, and cannot be affected by physical elements like fire, water, or wind. The concept of "all-pervading" in this context signifies that the soul is present in every corner of the universe, including elements like fire and air. It also highlights that the soul is not limited to the physical body and continues its existence beyond the material realm. The soul is a part of the divine, and even though it is part of the universe, it retains its original nature without being altered by the changing world around it.

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