🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 14 | Bhagavad Gita Chapter 3, Shlok 14

भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 14

Bhagavad Gita Adhyay 3 Shlok 14 में श्री कृष्ण यह बताते हैं कि सारे प्राणी अन्न पर निर्भर हैं, जो वर्षा से उत्पन्न होता है। वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।
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श्लोक:
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥१४॥

Transliteration:
annād bhavanti bhūtāni parjanyād anna-sambhavaḥ
yajñād bhavati parjanyo yajñaḥ karma-samudbhavaḥ

अर्थ:

सारे प्राणी अन्न पर आश्रित हैं, जो वर्षा से उत्पन्न होता है। वर्षा यज्ञ सम्पन्न करने से होती है और यज्ञ नियत कर्मों से उत्पन्न होता है।

Meaning:
All living beings depend on food, which is produced by rain. Rain is caused by sacrifices (Yajnas), and Yajnas arise from prescribed actions.

तात्पर्य:

भगवद्गीता के महान टीकाकार श्रील बलदेव विद्याभूषण इस प्रकार लिखते हैं-
ये इन्द्राद्यङ्गतयावस्थितं यज्ञं सर्वेश्वरं विष्णुमभ्यर्च्य तच्छेषमश्नन्ति तेन तद्देहयात्रां सम्पादयन्ति ते सन्तः सर्वेश्वरस्य यज्ञपुरुषस्य भक्ताः सर्वकिल्बिषैर् अनादिकालविवृद्धैर् आत्मानुभवप्रतिबन्धकैर्निखिलैः पापैर्विमुच्यन्ते।
परमेश्वर, जो यज्ञपुरुष अथवा समस्त यज्ञों के भोक्ता कहलाते हैं, सभी देवताओं के स्वामी हैं और जिस प्रकार शरीर के अंग पूरे शरीर की सेवा करते हैं, उसी तरह सारे देवता उनकी सेवा करते हैं। इन्द्र, चन्द्र तथा वरुण जैसे देवता भगवान् द्वारा नियुक्त अधिकारी हैं, जो सांसारिक कार्यों की देखरेख करते हैं। सारे वेद इन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञों का निर्देश करते हैं, जिससे वे अन्न उत्पादन के लिए प्रचुर वायु, प्रकाश तथा जल प्रदान करें। जब कृष्ण की पूजा की जाती है तो उनके अंगस्वरूप देवताओं की भी स्वतः पूजा हो जाती है, अतः देवताओं की अलग से पूजा करने की आवश्यकता नहीं होती। इसी हेतु कृष्णभावनाभावित भगवद्भक्त सर्वप्रथम कृष्ण को भोजन अर्पित करते हैं। और तब खाते हैं - यह ऐसी विधि है जिससे शरीर का आध्यात्मिक पोषण होता है।
ऐसा करने से न केवल शरीर के विगत पापमय कर्मफल नष्ट होते हैं, अपितु शरीर प्रकृति के समस्त कल्मषों से निरापद हो जाता है। जब कोई छूत का रोग फैलता है तो इसके आक्रमण से बचने के लिए रोगाणुरोधी टीका लगाया जाता है। इसी प्रकार भगवान् विष्णु को अर्पित करके ग्रहण किया जाने वाला भोजन हमें भौतिक संदूषण से निरापद बनाता है और जो इस विधि का अभ्यस्त है वह भगवद्भक्त कहलाता है।

The great commentator of the Bhagavad Gita, Srila Baladeva Vidyabhushan, explains that the Yajna (sacrificial rituals) offered to the Supreme Lord Vishnu benefits not only the worshiper but also the demigods like Indra, Chandra, and Varuna, who manage the worldly elements. According to the Vedic texts, these demigods are pleased through Yajnas, which lead to the production of essential elements like air, light, and water that help in growing food. When Lord Krishna is worshipped, the demigods are automatically honored as they are considered His parts. Therefore, worshiping Krishna directly through food offerings is considered the spiritual nourishment of the body, and this practice cleanses the body of material impurities, purifying it for spiritual elevation.

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