Bhagavad Gita Adhyay 6 Shlok 24 में श्रीकृष्ण बताते हैं कि योगाभ्यास में सफलता पाने के लिए मनुष्य को सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग करके, मन और इन्द्रियों को पूरी तरह वश में करना चाहिए।
श्लोक:
सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः॥२४॥
Transliteration:
saṅkalpa-prabhavān kāmāns tyaktvā sarvān aśheṣhataḥ
manasaivendriya-grāmaṁ viniyamya samantataḥ
मनुष्य को चाहिए कि संकल्प तथा श्रद्धा के साथ योगाभ्यास में लगे और पथ से विचलित न हो। उसे चाहिए कि मनोधर्म से उत्पन्न समस्त इच्छाओं को निरपवाद रूप से त्याग दे और इस प्रकार मन के द्वारा सभी ओर से इन्द्रियों को वश में करे।
Meaning:
One should abandon all desires born of mental speculations and completely control all the senses on all sides with the mind alone, with firm determination.
योगाभ्यास करने वाले को दृढ़संकल्प होना चाहिए और उसे चाहिए कि बिना विचलित हुए धैर्यपूर्वक अभ्यास करे। अन्त में उसकी सफलता निश्चित है- उसे यह सोच कर बड़े ही धैर्य से इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और यदि सफलता मिलने में विलम्ब हो रहा हो तो निरुत्साहित नहीं होना चाहिए। ऐसे दृढ़ अभ्यासी की सफलता सुनिश्चित है। भक्तियोग के सम्बन्ध में रूप गोस्वामी का कथन है-
उत्साहान्निश्चयाद्धैर्यात् तत्तत्कर्म प्रवर्तनात्।
सङ्गत्यागात्सतो वृत्तेः षड्भिर्भक्तिः प्रसिद्ध्यति॥
"मनुष्य पूर्ण हार्दिक उत्साह, धैर्य तथा संकल्प के साथ भक्तियोग का पूर्णरूपेण पालन भक्त के साथ रहकर निर्धारित कर्मों के करने तथा सत्कार्यों में पूर्णतया लगे रहने से कर सकता है।” (उपदेशामृत-३)
जहाँ तक संकल्प की बात है, मनुष्य को चाहिए कि उस गौरैया का आदर्श ग्रहण करे जिसके सारे अंडे समुद्र की लहरों में मग्न हो गये थे।
कहते हैं कि एक गौरैया ने समुद्र तट पर अंडे दिये, किन्तु विशाल समुद्र उन्हें अपनी लहरों में समेट ले गया। इस पर गौरैया अत्यन्त क्षुब्ध हुई और उसने समुद्र से अंडे लौटा देने के लिए कहा। किन्तु समुद्र ने उसकी प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दिया। अतः उसने समुद्र को सुखा डालने की ठान ली। वह अपनी नन्हीं सी चोंच से समुद्र का पानी निकालने लगी। सभी उसके इस असम्भव संकल्प का उपहास करने लगे। उसके इस कार्य की सर्वत्र चर्चा चलने लगी तो अन्त में भगवान् विष्णु के विराट वाहन पक्षिराज गरुड़ ने यह बात सुनी।
उन्हें अपनी इस नन्हीं पक्षी बहन पर दया आई और वे गौरैया से मिलने आये। गरुड़ उस नन्हीं गौरैया के निश्चय से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसकी सहायता करने का वचन दिया। गरुड़ ने तुरन्त समुद्र से कहा कि वह उसके अंडे लौटा दें, नहीं तो उसे स्वयं आगे आना पड़ेगा। इससे समुद्र भयभीत हुआ और उसने अंडे लौटा दिये। वह गौरैया गरुड़ की कृपा से सुखी हो गई।
इसी प्रकार योग, विशेषतया कृष्णभावनामृत में भक्तियोग, अत्यन्त दुष्कर प्रतीत हो सकता है, किन्तु जो कोई संकल्प के साथ नियमों का पालन करता है, भगवान् निश्चित रूप से उसकी सहायता करते हैं, क्योंकि जो अपनी सहायता आप करते हैं, भगवान् उनकी सहायता करते हैं।
A yogi must be resolute and determined. He should patiently continue his practice without getting discouraged. Ultimately, success is guaranteed. Even if there are delays, one should persist without losing heart. Such determined practitioners are sure to succeed.
Regarding devotion (bhakti-yoga), Śrīla Rūpa Gosvāmī states in Upadeśāmṛta (3):
utsāhān niścayād dhairyāt tat-tat-karma-pravartanāt
saṅga-tyāgāt sato vṛtteḥ ṣaḍbhir bhaktiḥ prasidhyati
"Devotional service becomes successful through enthusiasm, determination, patience, proper execution of duties, avoiding bad association, and following in the footsteps of previous great devotees."
To illustrate determination, we can take inspiration from a sparrow whose eggs were washed away by the ocean. The tiny bird demanded their return from the mighty sea, and when ignored, she began removing the ocean water with her beak. Everyone mocked her, but her determination became so well-known that Garuḍa, the mighty bird and vehicle of Lord Viṣṇu, came to help. He threatened the ocean and made it return the eggs. The sparrow succeeded because of her unwavering determination and divine help.
Similarly, bhakti-yoga may seem difficult, but one who follows the rules with firm resolve receives the help of the Lord. God helps those who help themselves.
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