🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 7 श्लोक 13 | Bhagavad Gita Chapter 7 Shlok 13

भगवद गीता अध्याय 7 श्लोक 13

Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 13 में श्रीकृष्ण कहते हैं कि तीनों गुणों से मोहित यह संसार उन्हें, जो इन गुणों से परे हैं, नहीं जान पाता।
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श्लोक:
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्॥१३॥

Transliteration:
tribhir guṇa-mayair bhāvair ebhiḥ sarvam idaṁ jagat
mohitaṁ nābhijānāti māmebhyaḥ param avyayam

अर्थ:

तीन गुणों (सतो, रजो तथा तमो) के द्वारा मोहग्रस्त यह सारा संसार मुझ गुणातीत तथा अविनाशी को नहीं जानता।

Meaning:
Deluded by the three modes of nature (sattva, rajas, and tamas), the entire world does not know Me, who is beyond these modes and imperishable.

तात्पर्य:

सारा संसार प्रकृति के तीन गुणों से मोहित है। जो लोग इस प्रकार से तीन गुणों के द्वारा मोहित हैं, वे नहीं जान सकते कि परमेश्वर कृष्ण इस प्रकृति से परे हैं।
प्रत्येक जीव को प्रकृति के वशीभूत होकर एक विशेष प्रकार का शरीर मिलता है और तदनुसार उसे एक विशेष मनोवैज्ञानिक (मानसिक) तथा शारीरिक कार्य करना होता है।
प्रकृति के तीन गुणों के अन्तर्गत कार्य करने वाले मनुष्यों की चार श्रेणियाँ हैं। जो नितान्त सतोगुणी हैं वे ब्राह्मण, जो रजोगुणी हैं वे क्षत्रिय और जो रजोगुणी एवं तमोगुणी दोनों हैं, वे वैश्य कहलाते हैं तथा जो नितान्त तमोगुणी हैं वे शूद्र कहलाते हैं।
जो इनसे भी नीचे हैं वे पशु हैं। फिर ये उपाधियाँ स्थायी नहीं हैं। मैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या कुछ भी हो सकता हूँ। जो भी हो यह जीवन नश्वर है।
यद्यपि यह जीवन नश्वर है और हम नहीं जान पाते कि अगले जीवन में हम क्या होंगे, किन्तु माया के वश में रहकर हम अपने आपको देहात्मबुद्धि के द्वारा अमरीकी, भारतीय, रूसी या ब्राह्मण, हिन्दू, मुसलमान आदि कहकर सोचते हैं।
और यदि हम प्रकृति के गुणों में बँध जाते हैं तो हम उस भगवान् को भूल जाते हैं, जो इन गुणों के मूल में है। अतः भगवान् का कहना है कि सारे जीव प्रकृति के इन गुणों द्वारा मोहित होकर यह नहीं समझ पाते कि इस संसार की पृष्ठभूमि में भगवान् हैं।
जीव कई प्रकार के हैं- यथा मनुष्य, देवता, पशु आदि; और इनमें से हर एक प्रकृति के वश में है और ये सभी दिव्यपुरुष भगवान् को भूल चुके हैं।
जो रजोगुणी तथा तमोगुणी हैं, यहाँ तक कि जो सतोगुणी भी हैं, वे भी परम सत्य के निर्विशेष ब्रह्म स्वरूप से आगे नहीं बढ़ पाते। वे सब भगवान् के साक्षात् स्वरूप के समक्ष संभ्रमित हो जाते हैं, जिसमें सारा सौंदर्य, ऐश्वर्य, ज्ञान, बल, यश तथा त्याग भरा है।
जब सतोगुणी तक इस स्वरूप को नहीं समझ पाते तो उनसे क्या आशा की जाये, जो रजोगुणी या तमोगुणी हैं? कृष्णभावनामृत प्रकृति के इन तीनों गुणों से परे है और जो लोग निस्सन्देह कृष्णभावनामृत में स्थित हैं, वे ही वास्तव में मुक्त हैं।

The entire material world is deluded by the three modes of nature. Those who are thus bewildered are unable to recognize that Krishna is beyond these modes, even though He is their source.
Every soul, being controlled by nature, is assigned a specific body and role-intellectually and physically. Human society is broadly categorized under the influence of these modes: Brahmins under sattva, Kshatriyas under rajas, Vaishyas under rajas and tamas, and Shudras under tamas.
Even these identities are temporary and based on bodily designations, which keep souls bound and unaware of Krishna the source of the modes. Only those who transcend all three modes by becoming Krishna conscious can truly understand Him and are truly liberated.

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