🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 7 श्लोक 23 | Bhagavad Gita Chapter 7 Shlok 23

भगवद गीता अध्याय 7 श्लोक 23

Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 23 में श्रीकृष्ण बताते हैं कि देवताओं की पूजा करने वाले लोग अल्पबुद्धि वाले होते हैं, क्योंकि उन्हें मिलने वाला फल क्षणिक होता है। केवल मेरे भक्त ही मेरे परमधाम को प्राप्त करते हैं।
bhagavad-gita-chapter-7-shlok-23
श्लोक:
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि॥२३॥

Transliteration:
antavat tu phalaṁ teṣhāṁ tad bhavatyalpa-medhasām
devān deva-yajo yānti mad-bhaktā yānti mām api

अर्थ:

अल्पबुद्धि वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित तथा क्षणिक होते हैं। देवताओं की पूजा करने वाले देवलोक को जाते हैं, किन्तु मेरे भक्त अन्ततः मेरे परमधाम को प्राप्त होते हैं।

Meaning:
Men of small intelligence worship the demigods, and their fruits are limited and temporary. Those who worship the demigods go to the planets of the demigods, but My devotees come to Me.

तात्पर्य:

भगवद्गीता के कुछ भाष्यकार कहते हैं कि देवता की पूजा करने वाला व्यक्ति परमेश्वर के पास पहुँच सकता है, किन्तु यहाँ यह स्पष्ट कहा गया है कि देवताओं के उपासक भिन्न लोक को जाते हैं, जहाँ विभिन्न देवता स्थित हैं- ठीक उसी प्रकार जिस तरह सूर्य की उपासना करने वाला सूर्य को या चन्द्रमा का उपासक चन्द्रमा को प्राप्त होता है।
इसी प्रकार यदि कोई इन्द्र जैसे देवता की पूजा करना चाहता है, तो उसे पूजे जाने वाले उसी देवता का लोक प्राप्त होगा। ऐसा नहीं है कि जिस किसी भी देवता की पूजा करने से भगवान् को प्राप्त किया जा सकता है।
यहाँ पर इसका निषेध किया गया है, क्योंकि यह स्पष्ट कहा गया है कि देवताओं के उपासक भौतिक जगत् के अन्य लोकों को जाते हैं, किन्तु भगवान् का भक्त भगवान् के ही परमधाम को जाता है।
यहाँ यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि यदि विभिन्न देवता परमेश्वर के शरीर के विभिन्न अंग हैं, तो उन सबकी पूजा करने से एक ही जैसा फल मिलना चाहिए। किन्तु देवताओं के उपासक अल्पज्ञ होते हैं, क्योंकि वे यह नहीं जानते कि शरीर के किस अंग को भोजन दिया जाय। उनमें से कुछ इतने मूर्ख होते हैं कि वे यह दावा करते हैं कि अंग अनेक हैं, अतः भोजन देने के ढंग अनेक हैं।
किन्तु यह बहुत उचित नहीं है। क्या कोई कानों या आँखों से शरीर को भोजन पहुँचा सकता है? वे यह नहीं जानतें कि ये देवता भगवान् के विराट शरीर के विभिन्न अंग हैं और वे अपने अज्ञानवश यह विश्वास कर बैठते हैं कि प्रत्येक देवता पृथक् ईश्वर है तथा परमेश्वर का प्रतियोगी है।
न केवल सारे देवता, अपितु सामान्य जीव भी परमेश्वर के अंग (अंश) हैं। श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि ब्राह्मण परमेश्वर के सिर हैं, क्षत्रिय उनकी बाहें हैं, वैश्य उनकी कटि तथा शूद्र उनके पाँव हैं और इन सबके अलग-अलग कार्य हैं। यदि कोई देवताओं को तथा अपने आपको परमेश्वर का अंश मानता है तो उसका ज्ञान पूर्ण है।
किन्तु यदि वह इसे नहीं समझता तो उसे भिन्न लोकों की प्राप्ति होती है, जहाँ देवतागण निवास करते हैं। यह वह गन्तव्य नहीं है, जहाँ भक्तगण जाते हैं।
देवताओं से प्राप्त वर नाशवान होते हैं, क्योंकि इस भौतिक जगत् के भीतर सारे लोक, सारे देवता तथा उनके सारे उपासक नाशवान हैं। अतः इस श्लोक में स्पष्ट कहा गया है कि ऐसे देवताओं की उपासना से प्राप्त होने वाले सारे फल नाशवान होते हैं, अतः ऐसी पूजा केवल अल्पज्ञों द्वारा की जाती है।
चूँकि परमेश्वर की भक्ति में कृष्णभावनामृत में संलग्न व्यक्ति ज्ञान से पूर्ण दिव्य आनन्दमय लोक की प्राप्ति करता है, अतः उसकी तथा देवताओं के सामान्य उपासक की उपलब्धियाँ पृथक्-पृथक् होती हैं।
परमेश्वर असीम हैं, उनका अनुग्रह अनन्त है, उनकी दया भी अनन्त है। अतः परमेश्वर की अपने शुद्धभक्तों पर कृपा भी असीम होती है।

Some commentators on the Gita say that one who worships any demigod can ultimately reach the Supreme Lord. However, here Lord Krishna clearly states that worshippers of demigods go to the respective planets of the demigods, not to Him.
Just as one who worships the sun goes to the sun, or one who worships the moon goes to the moon, similarly, one who worships Indra will go to Indra's planet. But such destinations are temporary and perishable.
Demigod worship is meant for those of lesser intelligence because their goals are limited and material. They do not understand that all benefits come ultimately from the Supreme Lord alone, through the agency of the demigods.
Such worship may lead to temporary material success but not to eternal liberation. Only Krishna’s pure devotees attain His eternal abode. His mercy is unlimited and far beyond what any demigod can offer.

एक टिप्पणी भेजें

Post a Comment (0)

और नया पुराने