Bhagavad Gita Adhyay 17 Shlok 4 में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि मनुष्य अपनी गुण-स्थिति के अनुसार अलग-अलग प्रकार की पूजा करता है। सतोगुणी देवताओं की, रजोगुणी यक्ष और राक्षसों की, तथा तमोगुणी भूत-प्रेतों की पूजा करते हैं।
श्लोक:
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः ।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः ॥४॥
Transliteration:
yajante sāttvikā devān yakṣha-rakṣhānsi rājasāḥ
pretān bhūta-gaṇānśh chānye yajante tāmasā janāḥ
सतोगुणी व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं, रजोगुणी यक्ष और राक्षसों की पूजा करते हैं, और तमोगुणी मनुष्य भूत-प्रेतों की पूजा करते हैं।
Meaning:
Men in the mode of goodness worship the demigods; those in the mode of passion worship Yakṣas and Rākṣasas, while those in the mode of ignorance worship ghosts and spirits.
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि अलग-अलग गुणों में स्थित लोग किस प्रकार की पूजा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार केवल भगवान ही पूजनीय हैं, किन्तु जो शास्त्रीय आदेशों को नहीं जानते या मानते, वे अपनी गुण-स्थिति के अनुसार पूजा करते हैं।
सतोगुणी लोग सामान्यतया देवताओं-जैसे ब्रह्मा, शिव, इन्द्र, चन्द्र और सूर्य-की पूजा करते हैं, किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए। रजोगुणी यक्ष और राक्षसों की पूजा करते हैं, और कभी-कभी शक्तिशाली व्यक्तियों को भी ईश्वर मानकर पूजते हैं। तमोगुणी लोग भूत-प्रेतों, कब्रों या किसी मृत प्राणी की आत्मा की पूजा करते हैं, यहाँ तक कि बलि भी चढ़ाते हैं।
वास्तव में ये सब पूजा के रूप भगवान की वास्तविक पूजा नहीं हैं। शुद्ध सात्त्विक अवस्था में स्थित होकर ही व्यक्ति वासुदेव (भगवान श्रीकृष्ण) की पूजा कर सकता है। श्रीमद्भागवत (४.३.२३) में कहा गया है- सत्त्वं विशुद्धं वसुदेव-शब्दितम् - अर्थात जब व्यक्ति का सत्त्व शुद्ध होता है, तभी वह वासुदेव की उपासना करता है।
निर्विशेषवादी सामान्यतया सतोगुण में स्थित होकर पंचदेवताओं (विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य, और देवी) की पूजा करते हैं, लेकिन अन्ततः निराकार ब्रह्म को ही सत्य मानते हैं और सबको त्याग देते हैं। निष्कर्ष यह है कि प्रकृति के गुणों से दूषित श्रद्धा को केवल दिव्य भक्तों की संगति से शुद्ध किया जा सकता है।
Lord Krishna classifies worship based on the modes of nature. Those in goodness worship demigods, those in passion worship Yakṣas and demons, and those in ignorance worship spirits and ghosts. True worship, however, is meant only for the Supreme Lord. Demigod worship, worship of powerful men, or worship of ghosts are material and temporary. Pure worship arises only when one is situated in pure goodness, which leads directly to devotion for Krishna.

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