Bhagavad Gita Adhyay 1 Shlok 11 में दुर्योधन अपने सेनानायकों को भीष्म पितामह की सुरक्षा में उनकी मदद करने के लिए निर्देशित करता है। वह यह सुनिश्चित करने के लिए कहता है कि हर सैनिक अपनी जगह पर अडिग रहे और भीष्म पितामह की सहायता करें, ताकि शत्रु किसी भी दिशा से हमला करने में सफल न हो।
श्लोक:
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥११॥
Transliteration:
ayaneṣhu cha sarveṣhu yathābhāgamavasthitāḥ
bhīṣhmamevābhirakṣhantu bhavantaḥ sarve eva hi
अतएव सैन्यव्यूह में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी-पूरी सहायता दें।
Meaning:
Therefore, stationed at your respective positions in the formation, all of you must ensure to assist Bhishma with full support.
भीष्म पितामह के शौर्य की प्रशंसा करने के बाद दुर्योधन ने सोचा कि कहीं अन्य योद्धा यह न समझ लें कि उन्हें कम महत्त्व दिया जा रहा है अतः दुर्योधन ने अपने सहज कूटनीतिक ढंग से स्थिति सँभालने के उद्देश्य से उपर्युक्त शब्द कहे। उसने बलपूर्वक कहा कि भीष्मदेव निस्सन्देह महानतम योद्धा हैं, किन्तु अब वे वृद्ध हो चुके हैं, अतः प्रत्येक सैनिक को चाहिए कि चारों ओर से उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखे। हो सकता है कि वे किसी एक दिशा में युद्ध करने में लग जायँ और शत्रु इस व्यस्तता का लाभ उठा ले। अत: यह आवश्यक है कि अन्य योद्धा मोर्चों पर अपनी-अपनी स्थिति पर अडिग रहें और शत्रु को व्यूह न तोड़ने दें।
दुर्योधन को पूर्ण विश्वास था कि कुरुओं की विजय भीष्मदेव की उपस्थिति पर निर्भर है। उसे युद्ध में भीष्मदेव तथा द्रोणाचार्य के पूर्ण सहयोग की आशा थी क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि इन दोनों ने उस समय एक शब्द भी नहीं कहा था, जब अर्जुन की पत्नी द्रौपदी को असहायावस्था में भरी सभा में नग्न किया जा रहा था और जब उसने उनसे न्याय की भीख माँगी थी। यह जानते हुए भी कि इन दोनों सेनापतियों के मन में पाण्डवों के लिए स्नेह था, दुर्योधन को आशा थी कि वे इस स्नेह को उसी तरह त्याग देंगे, जिस तरह उन्होंने द्यूत-क्रीड़ा के अवसर पर किया था।
Duryodhana, after praising Bhishma’s valor, speaks these words tactically to ensure that the other warriors do not feel sidelined. By emphasizing the need for everyone’s protection of Bhishma, he is trying to maintain the morale of his troops. He acknowledges Bhishma’s greatness but insists that his protection is paramount, especially as Bhishma is old and might focus his attention on one direction during battle. Duryodhana’s confidence in victory is rooted in his belief that Bhishma’s support will be decisive in securing the Kurus’ triumph. He is also hopeful that Bhishma and Dronacharya will be loyal, just as they were during the events of the dice game with Draupadi.
एक टिप्पणी भेजें