Bhagavad Gita Adhyay 2 Shlok 14 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि इन्द्रियों से उत्पन्न सुख-दुःख अस्थायी हैं, जैसे सर्दी और गर्मी का आना-जाना। एक ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह इन्हें सहन करना सीखे और अपने कर्तव्य से विचलित न हो।
श्लोक:
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥१४॥
Transliteration:
mātrā-sparśhās tu kaunteya śhītoṣhṇa-sukha-duḥkha-dāḥ
āgamāpāyino ’nityās tāns-titikṣhasva bhārata
हे कुन्तीपुत्र! यह सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी जैसे जो इन्द्रियबोध से उत्पन्न होते हैं, वे क्षणिक हैं, आते-जाते रहते हैं और नश्वर हैं। हे भारतवंशी! तू उनको सहन करना सीख।
Meaning:
O son of Kunti, the interactions of the senses with the sense objects give rise to feelings of cold and heat, pleasure and pain. These experiences are fleeting and temporary. Therefore, O descendent of Bharata, endure them bravely.
कर्तव्य निर्वाह करते हुए मनुष्य को सुख तथा दुःख के क्षणिक आने-जाने को सहन करने का अभ्यास करना चाहिए। वैदिक आदेशानुसार मनुष्य को माघ (जनवरी-फरवरी) के मास में भी प्रातः काल स्नान करना चाहिए। उस समय अत्यधिक ठंड पड़ती है, किन्तु जो धार्मिक नियमों का पालन करने वाला है, वह स्नान करने में तनिक भी झिझकता नहीं। इसी प्रकार एक गृहिणी भीषण से भीषण गर्मी की ऋतु में (मई-जून के महीनों में) भोजन पकाने में हिचकती नहीं। जलवायु सम्बन्धी असुविधाएँ होते हुए भी मनुष्य को अपना कर्तव्य निभाना होता है। इसी प्रकार युद्ध करना क्षत्रिय का धर्म है अतः उसे अपने किसी मित्र या परिजन से भी युद्ध करना पड़े तो उसे अपने धर्म से विचलित नहीं होना चाहिए। मनुष्य को ज्ञान प्राप्त करने के लिए धर्म के विधि-विधान पालन करने होते हैं क्योंकि ज्ञान तथा भक्ति से ही मनुष्य अपने आपको माया के बंधन से छुड़ा सकता है।
अर्जुन को जिन दो नामों से सम्बोधित किया गया है, वे भी महत्त्वपूर्ण हैं। कौन्तेय कहकर सम्बोधित करने से यह प्रकट होता है कि वह अपनी माता की ओर (मातृकुल) से सम्बंधित है और भारत कहने से उसके पिता की ओर (पितृकुल) से सम्बन्ध प्रकट होता है। दोनों ओर से उसको महान विरासत प्राप्त है। महान विरासत प्राप्त होने के फलस्वरूप कर्तव्यनिर्वाह का उत्तरदायित्व आ पड़ता है, अतः अर्जुन युद्ध से विमुख नहीं हो सकता।
While performing one's duties, a person must learn to tolerate fleeting sensations like happiness and distress, just as one endures cold in winter or heat in summer without neglecting daily obligations. A devout householder cooks meals in the heat, and a pious person bathes even during cold winters. Likewise, Arjuna, a warrior born of a noble lineage, cannot shy away from battle simply because it brings discomfort or involves loved ones. Knowledge and devotion are the means to liberation from illusion, and adherence to dharma is the path to attain that. The names ‘Kaunteya’ and ‘Bharata’ remind Arjuna of his powerful heritage and the duties that come with it.
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