Bhagavad Gita Adhyay 5 Shlok 10 में यह बताया गया है कि जो व्यक्ति सभी कर्म भगवान को समर्पित कर निष्काम भाव से कार्य करता है, वह पापों से अछूता रहता है।
श्लोक
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः ।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥१०॥
Transliteration:
brahmaṇyādhāya karmāṇi saṅgaṁ tyaktvā karoti yaḥ
lipyate na sa pāpena padma-patram ivāmbhasā
जो व्यक्ति कर्मफलों को परमेश्वर को समर्पित करके आसक्तिरहित होकर अपना कर्म करता है, वह पापकर्मों से उसी प्रकार अप्रभावित रहता है, जिस प्रकार कमलपत्र जल से अस्पृश्य रहता है।
Meaning:
One who performs their duties by surrendering them to the Supreme Brahman (God), and renouncing attachment to the results, remains untouched by sin—just as a lotus leaf remains unaffected by water.
यहाँ “ब्रह्मणि” का अर्थ है – कृष्णभावनामृत में स्थित होना, अर्थात् अपने समस्त कर्म भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित कर देना। यह भौतिक जगत प्रकृति के तीन गुणों की अभिव्यक्ति है, जिसे "प्रधान" कहा जाता है। वेदों में कहा गया है—“सर्वं ह्येतद् ब्रह्म” (माण्डूक्य उपनिषद्), जिसका अर्थ है – इस संसार की हर वस्तु ब्रह्म की ही अभिव्यक्ति है, अतः सभी वस्तुएँ भगवान की हैं।
जो व्यक्ति यह समझता है कि यह शरीर और इसकी क्रियाएँ भगवान की सेवा के लिए हैं और वे ही कर्मों के मूल कर्ता हैं, वह शुभ या अशुभ फल से नहीं बंधता।
जब शरीर और इन्द्रियों को भी कृष्ण की सेवा में लगाया जाता है, तब वह व्यक्ति पाप के स्पर्श से बचा रहता है – जैसे कमलपत्र जल में रहकर भी नहीं भीगता।
भगवान श्रीकृष्ण गीता (3.30) में कहते हैं:
“मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्य” — अपने समस्त कर्म मुझे (कृष्ण को) समर्पित कर दो।
तात्पर्य यह है कि जो कृष्णभावनाभावित व्यक्ति है, वह यह जानता है कि यह देह मेरी नहीं, यह तो भगवान की है, और इसका प्रयोग केवल भगवद्सेवा में होना चाहिए। वह कभी भी पापकर्मों से लिप्त नहीं होता।
In this verse, “Brahman” refers to acting in Krishna consciousness, offering all actions to the Supreme Lord without attachment. Such a person, even while engaging in worldly duties, is not affected by sinful reactions—just like a lotus leaf remains untouched by water. Everything belongs to Krishna and should be engaged in His service. By dedicating one’s body, senses, and actions to God, a person rises above karma and remains spiritually pure, even while performing material duties.
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