🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 11 श्लोक 17 | Bhagavad Gita Chapter 11 Shlok 17

भगवद गीता अध्याय 11 श्लोक 17

Bhagavad Gita Adhyay 11 Shlok 17 में अर्जुन भगवान के विराट रूप को देखकर कहता है कि वह तेजोमय रूप अग्नि और सूर्य की भाँति दीप्तिमान है। यह रूप मुकुट, गदा और चक्रों से युक्त है और उसकी चमक इतनी अधिक है कि उसे देख पाना अत्यंत कठिन है।
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श्लोक:
किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च
तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम् ।
पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ता-
द्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् ॥१७॥

Transliteration:
kirīṭinaṁ gadinaṁ chakriṇaṁ cha
tejo-rāśhiṁ sarvato dīptimantam
paśhyāmi tvāṁ durnirīkṣhyaṁ samantād
dīptānalārka-dyutim aprameyam

अर्थ:

आपके रूप को उसके चकाचौंध तेज के कारण देख पाना कठिन है, क्योंकि वह प्रज्ज्वलित अग्नि की भाँति अथवा सूर्य के अपार प्रकाश की भाँति चारों ओर फैल रहा है। तो भी मैं इस तेजोमय रूप को सर्वत्र देख रहा हूँ, जो अनेक मुकुटों, गदाओं तथा चक्रों से विभूषित है।

Meaning:
I see You adorned with crowns, holding maces and discs, radiating in all directions. Your brilliance is dazzling and immeasurable like the blazing fire or the sun, and it is difficult to behold You from all sides due to Your effulgence.

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