Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 26 में श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि वे भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानते हैं, लेकिन कोई भी उन्हें पूर्ण रूप से नहीं जानता।
श्लोक:
वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन॥२६॥
Transliteration:
vedāhaṁ samatītāni vartamānāni chārjuna
bhaviṣhyāṇi cha bhūtāni māṁ tu veda na kaśhchana
हे अर्जुन! श्रीभगवान् होने के नाते मैं जो कुछ भूतकाल में घटित हो चुका है, जो वर्तमान में घटित हो रहा है और जो आगे होने वाला है, वह सब कुछ जानता हूँ। मैं समस्त जीवों को भी जानता हूँ, किन्तु मुझे कोई नहीं जानता।
Meaning:
O Arjuna, as the Supreme Lord, I know everything that has happened in the past, everything that is happening in the present, and everything that will happen in the future. I also know all living entities; but Me, no one truly knows.
यहाँ पर साकारता तथा निराकारता का स्पष्ट उल्लेख है। यदि भगवान् कृष्ण का स्वरूप माया होता, जैसा कि मायावादी मानते हैं, तो उन्हें भी जीवात्मा की भाँति अपना शरीर बदलना पड़ता और विगत जीवन के विषय में सब कुछ विस्मरण हो जाता।
कोई भी भौतिक देहधारी अपने विगत जीवन की स्मृति बनाये नहीं रख पाता, न ही वह भावी जीवन के विषय में या वर्तमान जीवन की उपलब्धि के विषय में भविष्यवाणी कर सकता है। अतः वह यह नहीं जानता कि भूत, वर्तमान तथा भविष्य में क्या घट रहा है। भौतिक कल्मष से मुक्त हुए बिना वह ऐसा नहीं कर सकता।
सामान्य मनुष्यों से भिन्न, भगवान् कृष्ण स्पष्ट कहते हैं कि वे यह भलीभाँति जानते हैं कि भूतकाल में क्या घटा, वर्तमान में क्या हो रहा है और भविष्य में क्या होने वाला है, लेकिन सामान्य मनुष्य ऐसा नहीं जानते हैं।
चतुर्थ अध्याय में हम देख चुके हैं कि लाखों वर्ष पूर्व उन्होंने सूर्यदेव विवस्वान को जो उपदेश दिया था, वह उन्हें स्मरण है। कृष्ण प्रत्येक जीव को जानते हैं क्योंकि वे सबों के हृदय में परमात्मा रूप में स्थित हैं।
किन्तु अल्पज्ञानी प्रत्येक जीव के हृदय में परमात्मा रूप में स्थित होने तथा श्रीभगवान् के रूप में उपस्थित रहने पर भी श्रीकृष्ण को परमपुरुष के रूप में नहीं जान पाते, भले ही वे निर्विशेष ब्रह्म को क्यों न समझ लेते हों।
निस्सन्देह श्रीकृष्ण का दिव्य शरीर अनश्वर है। वे सूर्य के समान हैं और माया बादल के समान है। भौतिक जगत् में हम सूर्य को देखते हैं, बादलों को देखते हैं और विभिन्न नक्षत्र तथा ग्रहों को देखते हैं।
आकाश में बादल इन सबों को अल्पकाल के लिए ढक सकता है, किन्तु यह आवरण हमारी दृष्टि तक ही सीमित होता है। सूर्य, चन्द्रमा तथा तारे सचमुच ढके नहीं होते।
इसी प्रकार माया परमेश्वर को आच्छादित नहीं कर सकती। वे अपनी अन्तरंगा शक्ति के कारण अल्पज्ञों को दृश्य नहीं होते। जैसा कि इस अध्याय के तृतीय श्लोक में कहा गया है कि करोड़ों पुरुषों में से कुछ ही सिद्ध बनने का प्रयत्न करते हैं और सहस्रों ऐसे सिद्ध पुरुषों में से कोई एक भगवान् कृष्ण को समझ पाता है।
भले ही कोई निराकार ब्रह्म या अन्तर्यामी परमात्मा की अनुभूति के कारण सिद्ध हो ले, किन्तु कृष्णभावनामृत के बिना वह भगवान् श्रीकृष्ण को समझ ही नहीं सकता।
In this verse, Lord Krishna declares His omniscience He knows the past, present, and future of all living beings. However, no one knows Him in full.
This is a direct refutation of the impersonalist view which claims that God is subject to material illusion. If Krishna were under illusion, like an ordinary being, He would forget His past lives. But He doesn't. He knows everything.
Unlike conditioned souls who forget due to bodily change and illusion, Krishna remembers everything. Even millions of years ago, when He spoke to the Sun-god, He recalls it.
He is present in every being as the Supersoul and knows all. Yet, the materially conditioned souls, even if they realize the impersonal aspect (Brahman), fail to fully comprehend the personal aspect of the Supreme Krishna.
Krishna's form is eternal and spiritual. Like the sun that is temporarily covered by clouds but not affected by them, Krishna remains unaffected by maya. Only the ignorant are unable to perceive Him.
As stated earlier in this chapter (7.3), out of thousands, only a rare soul comes to know Krishna truly not just as Brahman or Paramatma, but as Bhagavan, the Supreme Person.
एक टिप्पणी भेजें