🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 8 श्लोक 11 | Bhagavad Gita Chapter 8 Shlok 11

भगवद गीता अध्याय 8 श्लोक 11

Bhagavad Gita Adhyay 8 Shlok 11 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उस स्थिति के बारे में बता रहे हैं जिसे वेद ज्ञानी 'अक्षर' कहते हैं और जिसे प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचारी जीवन का पालन किया जाता है। यह शुद्ध ब्रह्म स्थिति की ओर मार्गदर्शन करता है।
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श्लोक:
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति
विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः ।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति
तत्ते पदं सङ्ग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥११॥

Transliteration:
yad akṣharaṁ veda-vido vadanti
viśhanti yad yatayo vīta-rāgāḥ
yad ichchhanto brahmacharyaṁ charanti
tat te padaṁ saṅgraheṇa pravakṣhye

अर्थ:

जो वेदों के ज्ञाता हैं, जो ओंकार का उच्चारण करते हैं और जो संन्यास आश्रम के बड़े-बड़े मुनि हैं, वे ब्रह्म में प्रवेश करते हैं। ऐसी सिद्धि की इच्छा करने वाले ब्रह्मचर्यव्रत का अभ्यास करते हैं। अब मैं तुम्हें वह विधि बताऊँगा, जिससे कोई भी व्यक्ति मुक्ति-लाभ कर सकता है।

Meaning:
Those who are learned in the Vedas, who utter the imperishable syllable “Om,” and who are detached sages, enter into that Brahman. Desiring such perfection, one practices celibacy. I shall now explain to you that goal briefly.

तात्पर्य:

श्रीकृष्ण अर्जुन के लिए षट्चक्रयोग की विधि का अनुमोदन कर चुके हैं, जिसमें प्राण को भौहों के मध्य स्थिर करना होता है। यह मानकर कि हो सकता है अर्जुन को षट्चक्रयोग अभ्यास न आता हो, कृष्ण अगले श्लोकों में इसकी विधि बताते हैं। भगवान् कहते हैं कि ब्रह्म यद्यपि अद्वितीय है, किन्तु उसके अनेक स्वरूप होते हैं। विशेषतया निर्विशेषवादियों के लिए अक्षर या ओंकार ब्रह्म है। कृष्ण यहाँ पर निर्विशेष ब्रह्म के विषय में बता रहे हैं जिसमें संन्यासी प्रवेश करते हैं।
ज्ञान की वैदिक पद्धति में छात्रों को प्रारम्भ से गुरु के पास रहने से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए ओंकार का उच्चारण तथा परम निर्विशेष ब्रह्म की शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार वे ब्रह्म के दो स्वरूपों से परिचित होते हैं। यह प्रथा छात्रों के आध्यात्मिक जीवन के विकास के लिए अत्यावश्यक है, किन्तु इस समय ऐसा ब्रह्मचर्य जीवन (अविवाहित जीवन) बिता पाना बिल्कुल सम्भव नहीं है।
विश्व का सामाजिक ढाँचा इतना बदल चुका है कि छात्र जीवन के प्रारम्भ से ब्रह्मचर्य जीवन बिताना संभव नहीं है। यद्यपि विश्व में ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के लिए अनेक संस्थाएँ हैं, किन्तु ऐसी मान्यता प्राप्त एक भी संस्था नहीं है जहाँ ब्रह्मचर्य के सिद्धान्तों में शिक्षा प्रदान की जा सके। ब्रह्मचर्य के बिना आध्यात्मिक जीवन में उन्नति कर पाना अत्यन्त कठिन है।
अतः इस कलियुग के लिए शास्त्रों के आदेशानुसार भगवान् चैतन्य ने घोषणा की है कि भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम -
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे —
के जप के अतिरिक्त परमेश्वर के साक्षात्कार का कोई अन्य उपाय नहीं है।

Lord Krishna has already endorsed the process of ṣaṭ-cakra-yoga — raising the life force to the space between the eyebrows. Considering that Arjuna might not know this process, Krishna begins to describe the method for attaining liberation.
Here, Krishna refers to the impersonal Brahman which is realized through chanting “Om” and renunciation. In the Vedic system, students are trained in celibacy and the chanting of Om under the guidance of a spiritual master from a young age.
But in today’s world, such strict brahmacarya life is nearly impossible due to changes in social structure. Though many institutions teach worldly knowledge, very few teach spiritual celibacy. Without brahmacarya, spiritual progress is difficult.
Hence, in this Kali-yuga, Lord Chaitanya emphasized that apart from chanting the holy names
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare,
Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
there is no other way to realize the Supreme.

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