भगवद गीता अध्याय 8 श्लोक 28
अर्थ:
तात्पर्य:
- प्राचीन वेदों में मनुष्य को
- गुरुकुल में रहकर वेदों का अध्ययन करना,
- कठोर तपस्या,
- दान,
- यज्ञ करना
➥ 'Bhagavad Gita' संसार का एक महानतम ग्रंथ है। इसे हिंदू धर्म के सीमित दायरे में बाँधकर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि संसार की अनेक प्रमुख भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है और संसार के करोड़ों-अरबों लोग इसमें बताए गए जीवन-दर्शन का अनुसरण कर सुखपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं।
➥ 'GEETA' एक ऐसा ग्रंथ है जो विलक्षण रहस्यों से भरा पड़ा है। इसे आप जितनी बार पढ़ेंगे उतनी ही बार आपको नए-नए अर्थ, नए-नए भाव और नए-नए तर्क निकलते प्रतीत होंगे।
➥ वास्तव में यह ग्रंथ 'गागर में सागर' के समान है, जो मनुष्य की अनंत इच्छाओं, कामनाओं, आसक्तियों और चिंताओं को पल भर में शांत कर देता है।
➥ भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद से उपजा यह ग्रंथ द्वापर युग से आज तक अनेक संत-महात्माओं का मार्गदर्शन करता रहा है। अनेक साधारण लोग इसकी शिक्षाओं पर चलकर महान् बने हैं। मीरा, सूर, चैतन्य से लेकर महात्मा गांधी तक भगवद्गीता से जीवन-शक्ति ग्रहण करते रहे हैं। महात्मा गांधी के शब्दों में- "जब मुझे संदेह आ घेरते हैं; निराशाएँ चेहरे को बेनूर कर देती हैं। और आशा की कोई किरण नजर नहीं आती तो मैं 'गीता' में इसका हल तलाशता हूँ और फौरन ही मेरे चेहरे पर मुसकान खेलने लगती है, गम के बादल छँट जाते हैं। जो लोग प्रतिदिन गीता पढ़ते हैं, वे आनंद से हमेशा ताजादम रहते हैं और उन्हें इसके रोज नए-नए अर्थ मालूम होते हैं। "
➥'GEETA' की सबसे बड़ी सीख है— मनुष्य अकर्ता बनकर अपने सारे जरूरी कर्म अवश्य करे और उनके लिए फल की कामना न करे। स्वयं को कष्ट देकर, शरीर को प्रताड़ित करके तप करने से परमात्मा खुश नहीं होते; वे निष्काम भावना से अपने कर्मों में लगे रहनेवाले मनुष्य से खुश रहते हैं, जो जरूरी कर्म करते हुए सदैव परमात्मा का चिंतन करता रहता है।
➥ इस प्रकार Shrimad Bhagwat Geeta मनुष्यमात्र के लिए ज्ञान का भंडार है। इसे पढ़, समझ और पालन कर मनुष्य जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष पा सकता है- यह स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण की उद्घोषणा है।
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