Bhagavad Gita Adhyay 11 Shlok 33 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को प्रेरणा देते हैं कि वह युद्ध के लिए उठ खड़ा हो, क्योंकि युद्ध में विजय और राज्य पहले से ही निश्चित हैं। भगवान ने पहले ही शत्रुओं का विनाश कर दिया है- अर्जुन तो केवल निमित्तमात्र बनने वाला है।
श्लोक:
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून्भुंक्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥३३॥
Transliteration:
tasmāt tvam uttiṣhṭha yaśho labhasva
jitvā śhatrūn bhuṅkṣhva rājyaṁ samṛiddham
mayaivaite nihatāḥ pūrvam eva
nimitta-mātraṁ bhava savya-sāchin
अतः उठो! लड़ने के लिए तैयार होओ और यश प्राप्त करो। अपने शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य का भोग करो। ये सभी शत्रु पहले ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। हे सव्यसाची! तुम तो केवल निमित्तमात्र बनो।
Meaning:
Therefore, arise! Attain glory, conquer your enemies, and enjoy a flourishing kingdom. These warriors have already been slain by Me. O Arjuna, you are simply the instrument in this battle.
‘सव्यसाची’ का अर्थ है जो दोनों हाथों से धनुष चलाने में निपुण हो, और भगवान ने अर्जुन को इसी कौशलपूर्ण नाम से पुकारा। यहाँ भगवान अर्जुन को यह स्मरण कराते हैं कि वह केवल एक माध्यम है। युद्ध में विजय भगवान की योजना का हिस्सा है। संसार की हर गतिविधि, हर युद्ध और हर परिणाम, ईश्वर की इच्छा और उसकी योजना के अनुसार ही होता है। जो इसे समझता है और अपने जीवन को कृष्ण की सेवा में समर्पित करता है, वही सच्चे अर्थों में बुद्धिमान होता है।
इस श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि भगवान ने युद्ध में जीत का मार्ग पहले ही तैयार कर दिया है अर्जुन को केवल उठकर उस मार्ग पर चलना है।
‘Nimitta-mātraṁ’ just an instrument is the central message here. Although Arjuna is a skilled warrior (Savyasāchin), Krishna reveals that all the warriors have already been destroyed by divine will. The material world follows a divine plan, and wise individuals act in harmony with that plan. By aligning with Krishna’s will, one achieves perfection. Arjuna’s role is to act, not out of ego, but as a divine tool in the hands of the Supreme.
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