Bhagavad Gita Adhyay 11 Shlok 49 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सांत्वना देते हुए कहते हैं कि जो भयानक विश्वरूप तुमने देखा है, उससे अब भयभीत मत हो, और शान्तचित्त होकर पुनः मेरा वही चिरपरिचित स्वरूप देखो।
श्लोक:
मा ते व्यथा मा च विमूढभावो
दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम् ।
व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं
तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य ॥४९॥
Transliteration:
mā te vyathā mā cha vimūḍha-bhāvo
dṛiṣhṭvā rūpaṁ ghoram īdṛiṅ mamedam
vyapeta-bhīḥ prīta-manāḥ punas tvaṁ
tad eva me rūpam idaṁ prapaśhya
तुम मेरे इस भयानक रूप को देखकर अत्यन्त विचलित एवं मोहित हो गये हो। अब इसे समाप्त करता हूँ। हे मेरे भक्त! तुम समस्त चिन्ताओं से पुनः मुक्त हो जाओ। तुम शान्त चित्त से अब अपना इच्छित रूप देख सकते हो।
Meaning:
You have been deeply disturbed and bewildered by seeing My terrible form. Now, be free from fear and regain composure. With a peaceful mind, behold again the form you desire to see.
भगवद्गीता के प्रारम्भ में अर्जुन अपने पूज्य पितामह भीष्म तथा गुरु द्रोण के वध के विषय में चिन्तित था। किन्तु कृष्ण ने कहा कि उसे अपने पितामह का वध करने से डरना नहीं चाहिए। जब कौरवों की सभा में धृतराष्ट्र के पुत्र द्रौपदी को विवस्त्र करना चाह रहे थे, तो भीष्म तथा द्रोण मौन थे, अतः कर्तव्यविमुख होने के कारण इनका वध होना चाहिए। कृष्ण ने अर्जुन को अपने विश्वरूप का दर्शन यह दिखाने के लिए कराया कि ये लोग अपने कुकृत्यों के कारण पहले ही मारे जा चुके हैं। यह दृश्य अर्जुन को इसलिए दिखलाया गया, क्योंकि भक्त शान्त होते हैं और ऐसे जघन्य कर्म नहीं कर सकते। विश्वरूप प्रकट करने का अभिप्राय स्पष्ट हो चुका था।
अब अर्जुन कृष्ण के चतुर्भुज रूप को देखना चाह रहा था । अतः उन्होंने यह रूप दिखाया। भक्त कभी भी विश्वरूप देखने में रुचि नहीं लेता, क्योंकि इससे प्रेमानुभूति का आदान-प्रदान नहीं हो सकता। भक्त या तो अपना पूजाभाव अर्पित करना चाहता है या दो भुजा वाले कृष्ण का दर्शन करना चाहता है, जिससे वह भगवान् के साथ प्रेमाभक्ति का आदान-प्रदान कर सके।
Arjuna was frightened and confused by witnessing the terrifying universal form of Krishna. Understanding Arjuna’s fear, the Lord assures him not to be disturbed anymore. Krishna tells Arjuna to calm his mind and once again see the familiar, gentle form. This shift symbolizes that devotees like Arjuna are not interested in the terrifying manifestations of God but rather in His sweet, loving, and human-like form. The vision of the universal form was meant to assure Arjuna that all enemies were already doomed due to their past actions. Now that Arjuna’s purpose was fulfilled, the Lord reveals once more the form that inspires devotional love and peace.
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