🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 12 श्लोक 2 | Bhagavad Gita Chapter 12 Shlok 2

भगवद गीता अध्याय 12 श्लोक 2

Bhagavad Gita Adhyay 12 Shlok 2 में श्रीकृष्ण अर्जुन को उत्तर देते हुए बताते हैं कि जो भक्त उन्हें साकार रूप में श्रद्धा और निष्ठा से भजते हैं, वे योग में सबसे अधिक सिद्ध माने जाते हैं।
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श्लोक:
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते ।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥२॥

Transliteration:
mayy āveśhya mano ye māṁ nitya-yuktā upāsate
śhraddhayā parayopetās te me yuktatamā matāḥ

अर्थ:

श्रीभगवान् ने कहा- जो लोग अपने मन को मेरे साकार रूप में एकाग्र करते हैं और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरी पूजा करने में सदैव लगे रहते हैं, वे मेरे द्वारा परम सिद्ध माने जाते हैं।

Meaning:
The Supreme Lord said Those who fix their minds on My personal form and are always engaged in worshiping Me with great faith, I consider them to be the most perfect in yoga.

तात्पर्य:

अर्जुन के प्रश्न का उत्तर देते हुए कृष्ण स्पष्ट कहते हैं कि जो व्यक्ति उनके साकार रूप में अपने मन को एकाग्र करता है और जो अत्यन्त श्रद्धा तथा निष्ठापूर्वक उनको पूजता है, उसे योग में परम सिद्ध मानना चाहिए। जो इस प्रकार कृष्णभावनाभावित होता है, उसके लिए कोई भी भौतिक कार्यकलाप नहीं रह जाते, क्योंकि हर कार्य कृष्ण के लिए किया जाता है।
शुद्ध भक्त निरन्तर कार्यरत रहता है कभी कीर्तन करता है, तो कभी श्रवण करता है, या कृष्ण विषयक कोई पुस्तक पढ़ता है, या कभी-कभी प्रसाद तैयार करता है या बाजार से कृष्ण के लिए कुछ मोल लाता है, या कभी मन्दिर झाड़ता-बुहारता है, तो कभी बर्तन धोता है। वह जो कुछ भी करता है, कृष्ण सम्बन्धी कार्यों के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य में एक क्षण भी नहीं गँवाता। ऐसा कार्य पूर्ण समाधि कहलाता है।

In response to Arjuna’s question, Krishna clearly states that those who concentrate their mind on His personal form and worship Him with unwavering faith and devotion are to be considered the most perfect in yoga. A pure devotee who is absorbed in Krishna consciousness sees every activity as service to Krishna. He may chant, hear, read Krishna-related books, cook prasadam, go to the market to buy things for Krishna, clean the temple, or wash utensils - but everything is done for Krishna. Such constant engagement in devotional service is called full samadhi, or complete absorption in the Lord.

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