🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 12 श्लोक 6-7 | Bhagavad Gita Chapter 12 Shlok 6-7

भगवद गीता अध्याय 12 श्लोक 6-7

Bhagavad Gita Adhyay 12 Shlok 6-7 में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भक्त अपना संपूर्ण कर्म मुझे समर्पित करता है और अनन्य भाव से मेरी भक्ति करता है, मैं उसे जन्म-मृत्यु के सागर से शीघ्र मुक्त करता हूँ।
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श्लोक:
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि सन्न्यस्य मत्पराः ।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते ॥६॥
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् ।
भवामि न चिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥७॥

Transliteration:
ye tu sarvāṇi karmāṇi mayi sannyasya mat-parāḥ
ananyenaiva yogena māṁ dhyāyanta upāsate
teṣhām ahaṁ samuddhartā mṛityu-saṁsāra-sāgarāt
bhavāmi na chirāt pārtha mayy āveśhita-chetasām

अर्थ:

जो अपने सारे कार्यों को मुझमें अर्पित करके तथा अविचलित भाव से मेरी भक्ति करते हुए मेरी पूजा करते हैं और अपने चित्तों को मुझ पर स्थिर करके निरन्तर मेरा ध्यान करते हैं, उनके लिए हे पार्थ! मैं जन्म-मृत्यु के सागर से शीघ्र उद्धार करने वाला हूँ।

Meaning:
But those who dedicate all their actions to Me, considering Me as their supreme goal, and who worship Me with exclusive devotion, meditating on Me constantly with their minds fixed on Me O Parth, I swiftly deliver them from the ocean of birth and death.

तात्पर्य:

यहाँ यह स्पष्ट कहा गया है कि भक्तजन अत्यन्त भाग्यशाली हैं कि भगवान् उनका इस भवसागर से तुरन्त ही उद्धार कर देते हैं। शुद्ध भक्ति करने पर मनुष्य को इसकी अनुभूति होने लगती है कि ईश्वर महान हैं और जीवात्मा उनके अधीन है। उसका कर्तव्य है कि वह भगवान् की सेवा करे और यदि वह ऐसा नहीं करता, तो उसे माया की सेवा करनी होगी।
जैसा पहले कहा जा चुका है कि केवल भक्ति से परमेश्वर को जाना जा सकता है। अतएव मनुष्य को चाहिए कि वह पूर्ण रूप से भक्त बने। भगवान् को प्राप्त करने के लिए वह अपने मन को कृष्ण में पूर्णतया एकाग्र करे। वह कृष्ण के लिए ही कर्म करे। चाहे वह जो भी कर्म करे, लेकिन वह कर्म केवल कृष्ण के लिए होना चाहिए। भक्ति का यही आदर्श है।
भक्त भगवान् को प्रसन्न करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं चाहता। उसके जीवन का उद्देश्य कृष्ण को प्रसन्न करना होता है और कृष्ण की तुष्टि के लिए वह सब कुछ उत्सर्ग कर सकता है, जिस प्रकार अर्जुन ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में किया था। यह विधि अत्यन्त सरल है। मनुष्य अपने कार्य में लगा रह कर हरे कृष्ण महामन्त्र का कीर्तन कर सकता है। ऐसे दिव्य कीर्तन से भक्त भगवान् के प्रति आकृष्ट हो जाता है।

These verses emphasize that those who engage in exclusive devotion to Krishna, offering all their actions unto Him and constantly meditating upon Him, are swiftly rescued by Him from the ocean of birth and death. The pure devotee realizes the greatness of God and accepts the soul’s subordinate position. His only duty is to serve the Lord. This is the essence of the Gita’s teachings devotion, surrender, and action for Krishna’s pleasure. A true devotee wants nothing else except to please Krishna. He is ready to sacrifice anything for His satisfaction, as Arjun did on the battlefield. Even while performing his duties, a devotee can chant the Hare Krishna mantra and become deeply attached to the Lord.

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