Bhagavad Gita Adhyay 13 Shlok 26 में बताया गया है कि जो लोग आध्यात्मिक ज्ञान से अवगत नहीं होते, वे भी यदि प्रामाणिक साधकों से श्रवण करके पूजा करते हैं, तो जन्म और मृत्यु के चक्र को पार कर जाते हैं।
श्लोक:
अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः ॥२६॥
Transliteration:
anye tv evam ajānantaḥ śhrutvānyebhya upāsate
te ’pi chātitaranty eva mṛityuṁ śhruti-parāyaṇāḥ
ऐसे भी लोग हैं, जो यद्यपि आध्यात्मिक ज्ञान से अवगत नहीं होते पर अन्यों से परम पुरुष के विषय में सुनकर उनकी पूजा करने लगते हैं। ये लोग भी प्रामाणिक पुरुषों से श्रवण करने की मनोवृत्ति होने के कारण जन्म तथा मृत्यु के पथ को पार कर जाते हैं।
Meaning:
Even those who are unaware of spiritual knowledge, if they hear about the Supreme Person from others and worship Him, also cross beyond death, being devoted to hearing from the authorities.
यह श्लोक आधुनिक समाज पर विशेष रूप से लागू होता है, क्योंकि आधुनिक समाज में आध्यात्मिक विषयों की शिक्षा नहीं दी जाती। कुछ लोग नास्तिक प्रतीत होते हैं, तो कुछ अजेयवादी तथा दार्शनिक, लेकिन वास्तव में इन्हें दर्शन का कोई ज्ञान नहीं होता। जहाँ तक सामान्य व्यक्ति की बात है, यदि वह पुण्यात्मा है, तो श्रवण द्वारा प्रगति कर सकता है। यह श्रवण विधि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
आधुनिक जगत् में कृष्णभावनामृत का उपदेश करने वाले भगवान् चैतन्य ने श्रवण पर अत्यधिक बल दिया था, क्योंकि यदि सामान्य व्यक्ति प्रामाणिक स्रोतों से केवल श्रवण करे, तो वह प्रगति कर सकता है - विशेषतया चैतन्य महाप्रभु के अनुसार यदि वह हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे - इस दिव्य ध्वनि को सुने।
इसीलिए कहा गया है कि सभी व्यक्तियों को सिद्ध पुरुषों से श्रवण करने का लाभ उठाना चाहिए और इस तरह क्रम से प्रत्येक वस्तु समझने में समर्थ बनना चाहिए। तब निश्चित रूप से परमेश्वर की पूजा हो सकेगी। भगवान् चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि इस युग में मनुष्य को अपना पद बदलने की आवश्यकता नहीं है, अपितु उसे चाहिए कि वह मनोधार्मिक तर्क द्वारा परम सत्य को समझने के प्रयास को त्याग दे।
उसे उन व्यक्तियों का दास बनना चाहिए, जिन्हें परमेश्वर का ज्ञान है। यदि कोई इतना भाग्यशाली हुआ कि उसे शुद्ध भक्त की शरण मिल सके और वह उससे आत्म-साक्षात्कार के विषय में श्रवण करके उसके पदचिह्नों पर चल सके, तो उसे क्रमशः शुद्ध भक्त का पद प्राप्त हो जाता है।
इस श्लोक में श्रवण विधि पर विशेष रूप से बल दिया गया है और यह सर्वथा उपयुक्त है। यद्यपि सामान्य व्यक्ति तथाकथित दार्शनिकों की भाँति प्रायः समर्थ नहीं होता, लेकिन प्रामाणिक व्यक्ति से श्रद्धापूर्वक श्रवण करने से इस भवसागर को पार करके भगवद्धाम वापस जाने में उसे सहायता मिलेगी।
This verse is especially relevant to modern society, where spiritual education is rarely imparted. Many appear as atheists, agnostics, or philosophers, but in reality, they lack true philosophical understanding. A pious person, however, can progress simply by hearing. This hearing process is extremely important.
Lord Chaitanya emphasized the power of hearing, particularly the chanting of the divine sound vibration Hare Krishna, Hare Krishna, Krishna Krishna, Hare Hare / Hare Rama, Hare Rama, Rama Rama, Hare Hare.
By hearing from bona fide spiritual authorities, one gradually understands everything and develops proper worship of the Supreme Lord. Chaitanya Mahaprabhu advised that in this age, one need not change one’s social position, but must give up speculative arguments and simply hear submissively from realized souls.
If one is fortunate to associate with a pure devotee and hear from him, one will eventually become a pure devotee oneself. Thus, this verse stresses the importance of the hearing process, by which even ordinary people can transcend material existence and return to the spiritual abode.
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