🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 16 श्लोक 22 | Bhagavad Gita Chapter 16 Shlok 22

भगवद गीता अध्याय 16 श्लोक 22

Bhagavad Gita Adhyay 16 Shlok 22 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति काम, क्रोध और लोभ जैसे तीन नरक द्वारों से मुक्त हो जाता है, वह आत्म-साक्षात्कार हेतु कल्याणकारी कार्य करता है और अंततः परम गति को प्राप्त होता है।
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श्लोक:
एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः ।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ॥२२॥

Transliteration:
etair vimuktaḥ kaunteya tamo-dvārais tribhir naraḥ
ācharaty ātmanaḥ śhreyas tato yāti parāṁ gatim

अर्थ:

हे कुन्तीपुत्र! जो व्यक्ति इन तीनों नरक द्वारों से बच पाता है, वह आत्म-साक्षात्कार के लिए कल्याणकारी कार्य करता है और इस प्रकार क्रमशः परम गति को प्राप्त होता है।

Meaning:
O son of Kunti, one who is freed from these three gates of darkness-lust, anger, and greed-acts for the welfare of the soul, and thus gradually attains the supreme destination.

तात्पर्य:

मनुष्य को मानव जीवन के तीन शत्रुओं-काम, क्रोध तथा लोभ-से अत्यन्त सावधान रहना चाहिए। जो व्यक्ति जितना ही इन तीनों से मुक्त होगा, उतना ही उसका जीवन शुद्ध होगा। तब वह वैदिक साहित्य में आदिष्ट विधि-विधानों का पालन कर सकता है। इस प्रकार मानव जीवन के विधि-विधानों का पालन करते हुए वह अपने आपको धीरे-धीरे आत्म-साक्षात्कार के पद पर प्रतिष्ठित कर सकता है। यदि वह इतना भाग्यशाली हुआ कि इस अभ्यास से कृष्णभावनामृत के पद तक उठ सके तो उसकी सफलता निश्चित है। वैदिक साहित्य में कर्म तथा कर्मफल की विधियों का आदेश है, जिससे मनुष्य शुद्धि की अवस्था (संस्कार) तक पहुँच सके।
सारी विधि काम, क्रोध तथा लोभ के परित्याग पर आधारित है। इस विधि का ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य आत्म-साक्षात्कार के उच्चपद तक उठ सकता है और इस आत्म-साक्षात्कार की पूर्णता भक्ति में है। भक्ति में बद्धजीव की मुक्ति निश्चित है। इसीलिए वैदिक पद्धति के अनुसार चार आश्रमों तथा चार वर्णों का विधान किया गया है। विभिन्न जातियों (वर्णों) के लिए विभिन्न विधि-विधानों की व्यवस्था है। यदि मनुष्य उनका पालन कर पाता है, तो वह स्वतः ही आत्म-साक्षात्कार के सर्वोच्चपद को प्राप्त कर लेता है। तब उसकी मुक्ति में कोई सन्देह नहीं रह जाता।

One must be extremely cautious of the three enemies of human life-lust, anger, and greed. Freedom from these purifies one’s existence and enables adherence to Vedic injunctions. By following these prescribed duties, a person gradually elevates himself to self-realization. If fortunate, he advances to Krishna consciousness, ensuring ultimate success. The Vedas prescribe duties according to varna and ashrama, designed for purification. All such regulations are essentially based on giving up lust, anger, and greed. Complete self-realization culminates in devotion, and through devotion, liberation is assured.

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