🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 16 श्लोक 24 | Bhagavad Gita Chapter 16 Shlok 24

भगवद गीता अध्याय 16 श्लोक 24

Bhagavad Gita Adhyay 16 Shlok 24 में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि मनुष्य को शास्त्रों के अनुसार यह समझना चाहिए कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। शास्त्रों के विधानों को जानकर ही कर्म करना चाहिए।
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श्लोक:
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ॥२४॥

Transliteration:
tasmāch chhāstraṁ pramāṇaṁ te kāryākārya-vyavasthitau
jñātvā śhāstra-vidhānoktaṁ karma kartum ihārhasi

अर्थ:

अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान के अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है। उसे ऐसे विधि-विधानों को जानकर कर्म करना चाहिए, जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके।

Meaning:
Therefore, scripture is the authority for determining what should be done and what should not be done. Having understood the injunctions of the scriptures, one should act accordingly to gradually elevate oneself.

तात्पर्य:

जैसा कि पन्द्रहवें अध्याय में कहा जा चुका है, वेदों के सारे विधि-विधान कृष्ण को जानने के लिए हैं। यदि कोई भगवद्गीता से कृष्ण को जान लेता है और भक्ति में प्रवृत्त होकर कृष्णभावनामृत को प्राप्त होता है, तो वह वैदिक साहित्य द्वारा प्रदत्त ज्ञान की चरम सिद्धि तक पहुँच जाता है। भगवान् चैतन्य महाप्रभु ने इस विधि को अत्यन्त सरल बनाया-उन्होंने लोगों से केवल हरे कृष्ण महामन्त्र जपने तथा भगवान् की भक्ति में प्रवृत्त होने और अर्चाविग्रह को अर्पित भोग का उच्छिष्ट खाने के लिए कहा।
जो व्यक्ति इन भक्तिकार्यों में संलग्न रहता है, उसे वैदिक साहित्य से अवगत और सारतत्त्व को प्राप्त हुआ माना जाता है। उन सामान्य व्यक्तियों के लिए, जो कृष्णभावना से रहित हैं या भक्ति में प्रवृत्त नहीं हैं, करणीय तथा अकरणीय कर्म का निर्णय वेदों के आदेशों के अनुसार किया जाना चाहिए। मनुष्य को तर्क किये बिना तदनुसार कर्म करना चाहिए।
शास्त्रों में वे चार मुख्य दोष नहीं पाये जाते, जो बद्धजीव में होते हैं-अपूर्ण इन्द्रियाँ, कपटता, त्रुटि करना तथा मोहग्रस्त होना। इन चार दोषों के कारण बद्धजीव विधि-विधान बनाने के लिए अयोग्य होता है, अतः शास्त्रों के जो विधान हैं, वे इन दोषों से परे होते हैं और सभी महात्माओं तथा आचार्यों द्वारा बिना किसी परिवर्तन के स्वीकार किए जाते हैं।
भारत में आध्यात्मिक विद्या के कई दल हैं-निराकारवादी तथा साकारवादी। दोनों ही वेदों के नियमों के अनुसार जीवन बिताते हैं। शास्त्रों के नियमों का पालन किए बिना कोई सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता।
मानव समाज में समस्त पतनों का मुख्य कारण भागवतविद्या के नियमों के प्रति द्वेष है। यही मानव जीवन का सर्वोच्च अपराध है। भगवान् की भौतिक शक्ति अर्थात् माया त्रयतापों के रूप में हमें कष्ट देती रहती है। जब तक मनुष्य सतोगुण तक नहीं उठता, तब तक वह तमोगुण और रजोगुण में ही बंधा रहता है, जो आसुरी जीवन के कारण हैं।
रजो तथा तमोगुणी व्यक्ति शास्त्रों, पवित्र पुरुषों तथा भगवान् के ज्ञान की खिल्ली उड़ाते हैं। वे गुरु के आदेशों का उल्लंघन करते हैं और शास्त्रों के विधानों की अवहेलना करते हैं। भक्ति की महिमा सुनकर भी वे आकर्षित नहीं होते। इस प्रकार वे अपनी उन्नति का अपना निजी मार्ग बनाते हैं, जो उन्हें आसुरी जीवन की ओर ले जाता है।
किन्तु यदि किसी को योग्य तथा प्रामाणिक गुरु का मार्गदर्शन मिल जाता है, तो उसका जीवन सफल हो जाता है क्योंकि गुरु उच्चपद की ओर उन्नति का मार्ग दिखाते हैं।

As explained earlier in Chapter 15, all Vedic regulations aim at knowing Krishna. One who understands Krishna through the Bhagavad Gita and engages in devotion attains the ultimate perfection of Vedic knowledge. Lord Chaitanya simplified this process by teaching people to chant the Hare Krishna mantra, engage in devotional service, and accept Krishna-prasadam.
For those not inclined toward devotion, the distinction between what should and should not be done must be determined by scriptural injunctions. Scriptures are free from the four defects of conditioned souls-imperfect senses, cheating propensity, mistakes, and illusion. Thus, their authority is absolute and universally accepted by great saints and teachers.
Human downfall arises from disregard for scriptural rules, which is the greatest offense. Bound by rajo and tamo guna, demoniac people mock the scriptures, disregard gurus, and reject divine wisdom. They invent their own paths of advancement but are led only to degradation.
However, when one receives guidance from a bona fide guru, life becomes successful, for the guru shows the path of elevation toward the Supreme.

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