🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 17 श्लोक 23 | Bhagavad Gita Chapter 17 Shlok 23

भगवद गीता अध्याय 17 श्लोक 23

Bhagavad Gita Adhyay 17 Shlok 23 में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि "ॐ तत् सत्" ये तीन शब्द आदिकाल से परम सत्य, ब्रह्म को सूचित करते आए हैं और ब्राह्मण इन्हें वेदों व यज्ञों में उच्चारित करते हैं।
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श्लोक:
ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः ।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा ॥२३॥

Transliteration:
oṁ tat sad iti nirdeśho brahmaṇas tri-vidhaḥ smṛitaḥ
brāhmaṇās tena vedāśh cha yajñāśh cha vihitāḥ purā

अर्थ:

सृष्टि के आदिकाल से ॐ तत् सत् ये तीन शब्द परब्रह्म को सूचित करने के लिए प्रयुक्त किये जाते रहे हैं। ये तीनों सांकेतिक अभिव्यक्तियाँ ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते समय तथा ब्रह्म को संतुष्ट करने के लिए यज्ञों के समय प्रयुक्त होती थीं।

Meaning:
From the beginning of creation, the words "Om Tat Sat" have been used to indicate the Supreme Absolute Truth (Brahman). These three symbolic representations were invoked by the brāhmaṇas while chanting Vedic hymns and performing sacrifices to please the Supreme.

तात्पर्य:

यह बताया जा चुका है कि तपस्या, यज्ञ, दान तथा भोजन के तीन-तीन भेद हैं- सात्त्विक, राजस तथा तामस। लेकिन चाहे ये उत्तम हों, मध्यम हों या निम्न हों, ये सभी बद्ध तथा भौतिक गुणों से कलुषित हैं। किन्तु जब ये "ॐ तत् सत्" को लक्ष्य करके किये जाते हैं तो ये आध्यात्मिक उन्नति के साधन बन जाते हैं।
ॐ तत् सत् ये तीन शब्द विशेष रूप में परम सत्य भगवान् के सूचक हैं। वैदिक मन्त्रों में ॐ शब्द सदैव रहता है। वैदिक शास्त्र कहते हैं -
  • ॐ : ब्रह्म का सर्वश्रेष्ठ नाम (ऋग्वेद)
  • तत् : "तत् त्वम् असि" (छान्दोग्य उपनिषद) – आत्मा और ब्रह्म का सम्बन्ध
  • सत् : "सत् एव सौम्य" (छान्दोग्य उपनिषद) – परम सत्य का निरूपण
आदिकाल में ब्रह्मा ने यज्ञ करते समय इन तीनों शब्दों से भगवान् को लक्षित किया था। गुरु परम्परा द्वारा वही परम्परा आज तक चली आ रही है।
इसलिए भगवद्गीता के अनुसार कोई भी यज्ञ, तप या दान "ॐ तत् सत्" के लिए किया जाना चाहिए। जब इन शब्दों के द्वारा कर्म सम्पन्न किया जाता है, तो वह दिव्य हो जाता है और कृष्णभावनामृत का अंग बन जाता है। ऐसे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते और साधक को भगवद्धाम तक पहुँचाते हैं।

The words "Om Tat Sat" are eternal designations of the Absolute Truth. They sanctify sacrifices, austerities, and charity when performed for the satisfaction of the Supreme. Without this divine focus, even pious acts remain bound by the three modes of nature. Therefore, all Vedic rituals, charity, and penances must be dedicated to the Supreme Lord through these sacred sounds.

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