🛕 श्रीमद्‍भगवद्‍ गीता 🛕

भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 28 | Bhagavad Gita Chapter 18 Shlok 28

भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 28

Bhagavad Gita Adhyay 18 Shlok 28 में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो कर्ता शास्त्र-विरुद्ध कार्य करने वाला, हठी, कपटी, आलसी, खिन्न और दीर्घसूत्री होता है, वह तामसिक कर्ता कहलाता है।
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श्लोक:
अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः ।
विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ॥२८॥

Transliteration:
ayuktaḥ prākṛitaḥ stabdhaḥ śhaṭho naiṣhkṛitiko ‘lasaḥ
viṣhādī dīrgha-sūtrī cha kartā tāmasa uchyate

अर्थ:

जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है, जो भौतिकवादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घसूत्री है, वह तमोगुणी कहलाता है।

Meaning:
The doer who is undisciplined, materialistic, obstinate, deceitful, lazy, despondent, and procrastinating is said to be tamasic.

तात्पर्य:

शास्त्रीय आदेशों से हमें पता चलता है कि हमें कौन सा काम करना चाहिए और कौन सा नहीं करना चाहिए। जो लोग शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करके अकरणीय कार्य करते हैं, प्रायः भौतिकवादी होते हैं। वे प्रकृति के गुणों के अनुसार कार्य करते हैं, शास्त्रों के आदेशों के अनुसार नहीं। ऐसे कर्ता भद्र नहीं होते और सामान्यतया सदैव कपटी (धूर्त) तथा अन्यों का अपमान करने वाले होते हैं। वे अत्यन्त आलसी होते हैं, काम होते हुए भी उसे ठीक से नहीं करते और बाद में करने के लिए उसे एक तरफ रख देते हैं, अतएव वे खिन्न रहते हैं। जो काम एक घंटे में हो सकता है, उसे वे वर्षों तक घसीटते जाते हैं- वे दीर्घसूत्री होते हैं। ऐसे कर्ता तमोगुणी होते हैं।

A tamasic doer ignores scriptural injunctions and acts out of ignorance. He is stubborn, deceitful, lazy, despondent, and procrastinating. Such a person remains bound by inertia, engages in harmful actions, and fails to progress spiritually or materially.

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