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भगवत गीता श्लोक
भगवत गीता अध्याय 1 का श्लोक 9 | Bhagavad Gita Chapter 1, Shlok 9
भगवत गीता श्लोक
भगवत गीता अध्याय 1 का श्लोक 8 | Bhagavad Gita Chapter 1, Shlok 8
भगवत गीता श्लोक
➥ क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है।
➥ जो हुआ, वह अच्छा हुआ; जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा हैं; जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चात्ताप न करो। भविष्य की चिंता न करो। वर्तमान चल रहा है।
➥ तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए जो लिया, यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान्) से लिया जो दिया, इसी को दिया। खाली हाथ आए और खाली हाथ चले जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हो । बस, यही प्रसन्नता तुम्हारे दुःखों का कारण है।
➥ परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो मेरा तेरा, छोटा-बड़ा, अपना पराया - मन से मिटा दो। फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
➥ न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा। परंतु आत्मा स्थिर है, नाशहीन है, फिर तुम क्या हो?
➥ तुम अपने आपको भगवान् को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिंता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
➥ जो कुछ भी तुम करते हो, उसे भगवान् को अर्पण करते चलो। ऐसा करने से सदा जीवन्मुक्त का आनंद अनुभव करोगे।
➥ 'Bhagavad Gita' संसार का एक महानतम ग्रंथ है। इसे हिंदू धर्म के सीमित दायरे में बाँधकर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि संसार की अनेक प्रमुख भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है और संसार के करोड़ों-अरबों लोग इसमें बताए गए जीवन-दर्शन का अनुसरण कर सुखपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं।
➥ 'GEETA' एक ऐसा ग्रंथ है जो विलक्षण रहस्यों से भरा पड़ा है। इसे आप जितनी बार पढ़ेंगे उतनी ही बार आपको नए-नए अर्थ, नए-नए भाव और नए-नए तर्क निकलते प्रतीत होंगे।
➥ वास्तव में यह ग्रंथ 'गागर में सागर' के समान है, जो मनुष्य की अनंत इच्छाओं, कामनाओं, आसक्तियों और चिंताओं को पल भर में शांत कर देता है।
➥ भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद से उपजा यह ग्रंथ द्वापर युग से आज तक अनेक संत-महात्माओं का मार्गदर्शन करता रहा है। अनेक साधारण लोग इसकी शिक्षाओं पर चलकर महान् बने हैं। मीरा, सूर, चैतन्य से लेकर महात्मा गांधी तक भगवद्गीता से जीवन-शक्ति ग्रहण करते रहे हैं। महात्मा गांधी के शब्दों में- "जब मुझे संदेह आ घेरते हैं; निराशाएँ चेहरे को बेनूर कर देती हैं। और आशा की कोई किरण नजर नहीं आती तो मैं 'गीता' में इसका हल तलाशता हूँ और फौरन ही मेरे चेहरे पर मुसकान खेलने लगती है, गम के बादल छँट जाते हैं। जो लोग प्रतिदिन गीता पढ़ते हैं, वे आनंद से हमेशा ताजादम रहते हैं और उन्हें इसके रोज नए-नए अर्थ मालूम होते हैं। "
➥'GEETA' की सबसे बड़ी सीख है— मनुष्य अकर्ता बनकर अपने सारे जरूरी कर्म अवश्य करे और उनके लिए फल की कामना न करे। स्वयं को कष्ट देकर, शरीर को प्रताड़ित करके तप करने से परमात्मा खुश नहीं होते; वे निष्काम भावना से अपने कर्मों में लगे रहनेवाले मनुष्य से खुश रहते हैं, जो जरूरी कर्म करते हुए सदैव परमात्मा का चिंतन करता रहता है।
➥ इस प्रकार Shrimad Bhagwat Geeta मनुष्यमात्र के लिए ज्ञान का भंडार है। इसे पढ़, समझ और पालन कर मनुष्य जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष पा सकता है- यह स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण की उद्घोषणा है।